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Achar
घणो ॥ मुनिश्वर रूप, अनुपम भूप, अकल स्वरूप, जिनंद सणो । कहे नय खेम, धरी बहु प्रेम, नमे नर पावत, सुख घणो ॥ ४ ॥ मेघ नरिंद, मल्हार विराजित, सोवनवांन, समान तनु । चंद सुचंद, बदन सुहावत, रूपविनिगत, कामतनु । कर्मकी कोडी, सवे दुख छोडी, नमे करजोडी, करि भक्ति। वंश इक्षवाकु, विभूषण, साहिब, सुमति जीनंद. गए मुक्ति ॥५॥ हंसपाद तुल्य रंग, रति अर्ध रागरंग, अढिसे धनुष चंग देहको प्रमाण हे । उगतो दिणंद रंग, लालकेसु फुल रंग, रूप हे अनंग, भंग केरो वान हे ॥ गंग को तरंग रंग, देवनाथही अभंग, ज्ञानको विसाल रंग, शुद्ध जाको ध्यान हे । निवारीए क्लेश संग, पद्मप्रभस्वामि धींग, दिजिए सुमति संग, पद्मकरो जाम हे ॥६॥ जिणंद सुपास, तणा गुण रास, गावे भवि भास, आणंद घणे । गमे भविपास, महिमा निवास, पूरे सवि आस, कुमति हणे ॥ चींहु दिसे वास, सुगंध सुवास, उसास नीःसास, जिनेंद्र तणो । कहे नय खास, मुनींद्र सुपास, तणो जस वास
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