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॥ छंद जाति सवैया ॥ आदि जिणंद, नमे नरइंद. सपुनमचंद, समान सुखं । समामृत कंद, टाले भवफंद, मरूदेवीनंद,करत सुखं ॥ लगे जस पाय, सुरिंद निकाय, भला गुण गाय, भविक जनं ॥ कंचन काय, नहि जस माय, नमे सुख थाय, श्री आदिजिनं ॥ १ ॥ अजितजिणं, दयाल मयाल, विसाल नयन, कृपाल जुगं। अनुपम गाल. महामृग चाल, सुभाल सुजानग, बाहु जुगं । मनुष्यमे बलीह, मुनिसरसींह, अबीह निरीह, गये मुगती । कहे नय चित्त, धरी बहु नक्ति, नमे जिननाथ, भली जुगती ॥२॥ कहे संभवनाथ, अनाथको नाथ, मुगतिको साथ, मिल्यो प्रभु मेरो । भवोदधिपाज, गरिबनिवाज, सवे शिरताज, निवारत फेरो ॥ जितारीको जात, सुसेना मात, नमे नर जात, मिली बहु घेरो । कहे नय शुद्ध, धरि बहु बुद्ध, जिनावन नाथ हुँ, सेवक तेरो ॥३॥ अभिनंदन स्वाम, लिधे जश नाम, सरे सवि काम, जविक तणो ॥ वनिता जस गाम, निवासको ठाम, करे गुण ग्राम, नरिंद
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