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हाते लेइ दीवी ॥ मेराइया दिन सफळ करी, लोक कहे सवी जीवी ॥ ४ ॥ कल्याणक जाणो करी, दीवा ते कीजे ॥ जाप जपो जिनराजनो, पातिक सवि छीजे ॥ ५॥ बीजे दिन गौतम सुणी, पाम्या केवळ ज्ञान ॥ बार सहस गुणणु गुंणो, घर होसे कोड कल्याण ॥६॥ सुरनर किन्नर सहु मिली, गौतमने आपे ॥ भट्टारक पदवी देइ, सहू साखे थापे ॥ ७॥ जवार भट्टारक थकी, लोक करे जुहार ॥ बेन लाई जिमाडीया, नंदी वर्द्धन सार ॥८॥ भाइ बीज तिहा थकी, वीर तणो अधिकार ॥ जयविजय गुरु संपदा, मुजने दीयो मनोहार ॥९॥
॥ चोवीस जिनेश्वरना छंद ॥ ॥चोपाइ ॥ आर्या ब्रह्मसुता वाणी गिर्वाणी। सुमति विमल आपो ब्रह्माणी। कमल कमंडल पुस्तक पाणी । हुं प्रणमुं जोडी जुग पाणी ॥ १॥ दुहा ॥ चोवीसे जिनवर तणा। छंद रचूं चोसाल । भणतां शिवसुख संपजे । सुणतां मंगल माल ॥ २ ॥
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