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॥५॥ पंचे तीरथ जे नमे; प्रह उठी नरनार ॥ कमळविजय कवी एम कहे, तस घर जय जयकार ॥इति ।।
॥चैत्यवंदन बीजु ॥ ॥ आजदेव अरिहंत नमुं, समलं तारं नाम । ज्या ज्या प्रतिमा जिनतणी, त्यां त्यां करुं प्रणाम ॥१॥ शत्रुजय श्री आदिदेव, नेम नमुं गिरनार ॥ तारंगे श्री अजितनाथ; आबु ऋषभ जुहार ॥२॥ अष्टापद गिरि उपरे, जिन चोवीशे जोय ॥ मणिमय मुरति मानशुं, भरते भरावी सोय ॥३॥ समेत शिखर तीरथ वडुं, जिहां वीशे जिन पाय ॥ वैभारक गिरि उपरें, श्रीवीर जिनेश्वर राय ॥ ४ ॥ मांडव गढनो राजियो, नामे देव सुपास ॥ ऋषम कहे जिन समरतां, पहोचे मननी आश ॥५॥ इति ॥
॥ श्री सिद्धचक्रजी- चैत्यवंदन ॥ विमल केवल ज्ञान कमला ॥ ए देशी ॥
॥ सकल मंगल परम कमला, केली मंजुल मं. दिरं ॥ भव कोटि संचित पाप नासन ॥ नमो न पद जयकरं ॥१॥ अरिहंत सिद्धसूरी वाचक, साधु
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