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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ ॥ ये शिक्षा ॥ ५ ॥ एह अमे खोलग करू, सुणज्यो बीजा चंद || वंदना हमारी वीनंती, जइ कहेज्यो जिनचंद ॥ ६ ॥ समवसरण बेठा जिणंद, उपदेशे जिधर्म | भविक जिव वाणी सुणी, बांधे जे शुभ कर्म ॥ ७ ॥ आठ कर्म चारे कषाय, अढार दोष छंडाय ॥ लही नाण. चौतीश अतिशया, वाणी गुण कहेवाय ॥ ८ ॥ भरत क्षेत्रनां भविकजन, वांछे तुम आशिष ॥ हर्षपणे धर्मलाभ द्यो, पूरो संघ जगीश ॥ ९ ॥ इति ॥ ॥ श्री पंच तिथेनुं चैत्यवंदन. ॥ ॥ धुर समरूं श्री आदिदेव, विमलाचल मंगण || नाभिराया कुल केसरी, मारुदेवी नंदन ॥ १ ॥ गिरनारे गिरुवो वांदर्श, स्वामी नेमकुमार ॥ बालपणे चारित्र लीयो, तारी राजुल नार ॥ २ ॥ बंभण वाडे वीर जिणंद, मन वंछित पुरे ॥ सायण डायण भुत प्रेत, तेहना मद चूरे ॥ ३ ॥ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ, महिमाये महंतो, गोमी दोडी जाइये, पुरे मननी खंतो ॥ ४ ॥ चक्रवर्ति पदवी तजी, लीधो संजम भार ॥ शांति जिणेसर सोलमां, नित्य नित्य करूं जुहार ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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