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त्रिसला उयर सर हंस सम, प्रगटयो सुखकंद ।। केसरी लंछन विमल तनु, कंचनमय वृंद ॥२॥ महावीर जगमा वडोए, पावापुरि निर्वाण ॥ सुरनर भूप नमे सदा, पामे अविचल ठाण ॥ ३ ॥ इति ॥
॥श्री महावीर स्वामीनु चैत्यवंदन ॥ नव चोमासीतप कर्यां,त्रणमासी दोय॥दोय दोय अढीमासी, तिम दोय मासी होय ॥१॥ बहोत्तेर पास खमण कर्या,मास खमण को बार ॥ खटमासी आदर्या बार ॥ अठम तप सार ॥२॥ षटमासी एकतिम कयों, पण दिन उण षटमास ॥ बसें ओगणत्रीस छठभला, दिदा दिन एक खास ॥३॥ भद्र प्रतिमा दोय तिम, महाभद्र दिन च्यार ॥ दस दिन सर्वतो भद्रना, ला. गट निरधार ॥४॥विण पाणी सप आदर्यो, पारण दिन जास ॥ द्रव्या हारण नक कह्यो, त्रणसें उगण पंचास ॥ ५॥ छद्मस्थे एणीपरे रह्या, सह्या परिसह घोर ॥ शुकल ध्यान अनले करी, बाट्या कर्म कठोर ॥६॥ शुकल ध्यान अंतर रह्या ए, पांम्या केवलनाण ॥ यशविजय कहे प्रणमतां, लहीये नित्य कल्याण ॥ ॥७॥ इति ॥
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