________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४४ .
पिशाच व्यंतर, जलण जलोदर भय टळे ॥ राज्य रमणी रमा पामे, भक्ति भावे जो मळे ॥ कल्पतरुथी अधिक दाता, जगत त्राता जयकरो ॥ नित्य० ॥७॥ जरा जर्जरी भूत यादव, सैन्य रोग निवारता, वढीयार देशे नित्य विराजे, भविक जीवने तारता ॥ ए प्रभु तणा पद पद्म सेवी, रूप कहे प्रभुता वरो ॥ नित्य जाप जपीये, पाप खपीये, स्वामी नाम शंखेश्वरो ।। ९ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री पार्श्वनाथजिन चैत्यवंदन ॥ ॥ पुरिसां दाणी पार्श्व नाथ, नमीये मन रंग ॥ नीलवरण अश्वसेन नंद, निरमल निस्संग ॥१॥ कामीत दायक कल्पसाखी, वामा सुतसार ॥ श्री गवडीपुर स्वाम नाम, जपियें निरधार ॥ २ ॥ त्रिजुवन पति त्रेवीसमोए, जास अखंगीत आण ॥ एक मनें आराधतां, लहिये कोड कट्याण. ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ श्री वर्द्धमानजिन चैत्यवंदन ॥ ॥ वर्द्धमान जिनवर धणी, प्रणमुं नित्य मेव ॥ सिद्धारथ कुल चंदलो, सुर निर्मित सेव ॥ १॥
For Private And Personal Use Only