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Achar
स्वर्गथी प्रभु अवतरयो ॥ नित्य० ॥ २ ॥ पोश मासे कृष्णपक्षे, दशमि दिन प्रमु जनमीया ॥ सुरकुमार सुरपति भक्ति भावे, मेरु श्रृंगे स्थापिया ॥ प्रभाते पृथ्वी पति प्रमोदे, जन्म महोच्छव अति कयों॥ नित्य० ॥३॥त्रण लोक तरुणी मन प्रमोदी, तरुण वय जब आविया ॥ तव मात तातने परण्य चाते भाभिनि परणावीया ।। कमठ शठकृत अग्निकुंडे, नाग बळतो उधों ॥ नित्य० ॥४॥ पोश वदि एकादशी दिन, प्रवा जिन आदरे ॥ सूर असूर राजी भक्ति साजी, सेवना झाझी करे ॥ काउस्सग्ग करता देखी कमठे, किध परिसह आकरो ॥ नित्य० ॥ ५ ॥ तव ध्यान धारारुढ जिनपति, मेघ धारे नवि चळ्यो । तिहां चलित आसन धरण आयो, कमठ परिसह अटकळ्यो । देवाधि देवनी करी सेवा, कमठने काढी परो । नित्य० ॥६॥ क्रमे पामी केवळज्ञान कमळा, संघ चउवीह स्थापीने, प्रभुगया मोक्षे समेत शिखरे, मास अणसण पाळीने ॥ शिवरमणी संगे रमे रसियो, भविक तस सेवा करे ॥ नित्य० ॥ ७॥ भूत प्रेत
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