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पाए ॥ प्रभु महिमा सागर गुण वैरागर पास अंतरीक जे स्तवे, तस सकल मंगल जयजयारव आनंद वर्धन विनवे ॥ १ ॥ इति ॥
॥चैत्यवंदन बीजं ॥२॥ ॥ जय चिंतामणि पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन स्वामी ॥ अष्टकर्म रिपु जीतीने, पंचम गति पामी ॥१॥ प्रभुनामे आनंदकंद, सुख संपत्ति लहीये ॥ प्रभु नामे भवभय तणां, पातक सब दहियें ॥ २ ॥ ॐ ही वर्ण जोडी करीए, जपीये पारस नाम ॥ विष अमृत थई परगमे, पावे अविचल ठाम ॥ ३॥ इति॥
॥ अथ चोवीस तीर्थकरनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ रुषभ अजित संभव नमो, अनिनंदन जिनराज ॥ सुमती पदम सुपास जिन, चंद्रप्रभु महाराज ॥१॥ सुविधि शीतल श्रेयांस जिन, वासुपूज्य सुख वास ॥ विमल अनंत श्रीधर्म जिन, शांतिनाथ पूरे आश ॥२॥ कुंथु अर मल्लि जिन, मुनीसुव्रत जगनाथ ॥ नमी नेमी पार्श्व वीर, ए साचो शिवपुर साथ ॥३॥ द्रव्य भावथी सेवीये, आणी मन उल्लास
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