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एक मोरी. मुज तार तुं तार बलीहारी तोरी ॥३॥ सही सुप्न जंजालमां संग मोह्यो, घडीयालमां काल रमतो न जोयो ॥ मुधा एम संसारमा जन्म खोयो, अहो घृत तणे कारणे जल विलोयो ॥ ४ ॥ एतो भ्रम लोके सुवा भ्रांति धायो, जश् सुक तणी तंतु मांदे भरायो ॥ सुके जंबु जाणी ग्रने दुःख पायो, प्रभु लालचे जीवडो एम वाह्यो ॥ ५॥ भम्यो भ्रम भुल्यो रम्यो कर्म भारी, दयाधर्मनी बात नवी विचारी ॥ तोरी नम्र वाणी परम सुखकारी, तीहं लोकना नाथ नवी संभारी ॥६॥ विषय वेलडी सेलडी करी जाणी, भजी मोह तृष्णा तजी तोरी बाणी ॥ एवो भलो भुंडो नीज दास जाणी, प्रभु राखीए बांहनी छाह प्राणी ॥ ७॥ मारा विविध अपराधना कोड सहीए, प्रभु सरणे आव्या तणी लाज वहीए ॥ वली घणी घणी विनति एम कहीए, मुज मानस परमहंस रहीए ॥ ८॥ इति
॥ कलस ॥ कृपामूर्ति पार्श्वस्वामी मुगती गामी ध्याश्ये, अति भक्ति भावे विपत जावे तास संपती
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