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झीलीजे, दान संवच्छरी दीजे ॥ इम चक्केसरी सानिध कीजे, ज्ञान विमलसूरी जग जाणीजे, सुजस महोदय कीजे. ॥ ४ ॥ इति श्री पर्युषणापर्व स्तुति समाप्त ॥
॥ अथ श्री नवपद् ओळीनी थोय ॥ ___अंग देश चंपापुर वासी, मयणांसु श्रीपाल खासी, समकित सु मन वासी ॥ आदि जिणेसरनी उल्लासी, भाव पूजा कीधी मन आसी, भावधरी वीसवासी ॥ गलित कोड गयो तिणे नासी, सुविधिसु सिद्धचक्र उपासी, थयो स्वर्ग निवासी॥आसो चैत्रनी पूरण मासी, प्रेम पूजा भक्ति विकासी, आदि पुरुष अविनाशी ॥१॥ केसर चंदन मृगमद घोळी, हरखेसु भरी हेम कचोली, शुद्ध जले अघोली॥ नव आंबेलनी कीजे ओली, आसो शुद सातमथी खोली, पूजो श्री जिन टोली ॥ चिहुं गतिनी महा आपद चोली, दुरगतिना दुःख दूरे ढोली, कर्म निकाचित रोली ॥ क्रोध कषाय तणा मद लोली, जिम शिव रमणी भरम नोळी, पामो सुखनी ओळी॥२॥आसो सुदी सातम सुविचारी, चैत्री पण चित्तशुं निरधारी, नव
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