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४५६ :
आंबेलनी सारी ॥ ओली कीजे आळस वारी, पुनिम लगे सचित परिहारी, देहरे देव जुहारी॥ पडिकमणा बे कीजे धारी, सिद्धचक्र पूजो सुखकारी, श्री सिद्धांत मजारी ॥ श्री जिन भाषित पर उपकारी, नवपद जाप जपो नरनारी, जिम लहो मुक्तिनी बारी ॥३॥ श्याम भ्रमर सम वेणी काली, अति सुंदर सोहे सुकमाली, जाणो राज मराली ॥ जलहल चक्र धरे रुपाली, श्री. जिन शासननी रखवाली, चक्रेश्वरी में भाली ॥ जे
ओली करे उजमाली, तेहनां विघन हरे सा बाली, सेवक जिन संभाली ॥ उदय रत्न कहे आसन वाळी, जे जिन नाम जपे जपमाली, ते घर नित्य दिवाली॥४॥
॥ थंभण पार्थनाथनी स्तुति ॥ ॥ स्थंभण पुरवर पास जिणंदो, अश्वसेन कुल कमल दिणंदो, आमोली अभव कंदो॥ मोहराय शिर पाडे दंडो, तिहुअण जास प्रताप अखंडो, भविअण मन आणंदो । भव भय भीम भलि परे चूरे, मन वंछित सवि संपद पुरे, प्रभुकर मोरी सारो ॥ वरुणज कहीए पश्चीम स्वामी, जिणे आराध्यो तुं शीरनामी,
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