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Achar
४५० वाणी, गणधर देव कहाणी ॥ दोढसो कल्याणकनी खाणी, एक अगिआरसनो दिन जाणी, इम कहे के. वल नाणी ॥ पुन्य पापतणी जेह कहाणी, सांभळतां सुख लेख लखाणी, तेहनी स्वर्ग निसाणी ॥ विद्या पूर्वग्रंथे विरचाणी, अंग उपांग जे सुत्रे गुंथाणी, सु. णतां दिये शीवराणी ॥ ३ ॥ जिन शासनमा जे अ. धिकारी, देव देवी जे समकित धारी, सांनिध्य करो संभारी ॥ धर्म करे तस उपर प्यारी, निश्चल धर्म करे सुविचारी, तेछे परउपगारी ॥ वीड मंडण महावीर जुहारी, पाप पखालं जिनने जुहारी, लाभविजय हितकारी ॥ मातंग जक्ष सिधाइ सारी, ओलग सारे सुर अधिकारी, श्री संघनां विघन निवारी ॥ ४॥ इति मौन अगिआरसनी थोय. ॥
॥ अथ सिद्धाचलनी थोय ॥ ॥ सकल मंगल लीला मुनि ध्यान, परनव घृ. तनुं दिधुं दान, भविजन एह प्रधान ॥ मरुदेवाए जनमज दीधो, इंद्र सेलडी आगल कीधो, वंस इकाग ते सीधो ॥ सुनंदा सुमंगला राणी, पूरव प्रीत
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