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सानिध्य, कारक समकितवंत ॥ जे शासन सुरनर, विघ्न कोडी हरंत ॥ श्री ज्ञान विमलसरि, लीला लब्धि लहंत ॥४॥ इति पन्नरतिथीनी थोयो संपूर्ण ॥
॥ अथ मौन अगिआरसनी थोय ॥ ॥ गौतम बोले ग्रंथ संभाळी, वर्धमान आगल रढीयाली, वाणी अतिहि रसाली ॥ मौन अगीआरस महिमा भाली, किणे कीधी ने कहो किणे पाली, प्रश्न करे टंकशालि ॥ कहोने स्वामी परव पंचालि, महिमा अधिक अधिक सुविसाली, कुण कहे कहो भ्रम टाली ॥ वीर कहे मागसर अजुआली, दोढसो कल्याणक निहाळी, अगीआरस कृष्णे पाली ॥१॥ नेमनाथने वारे जाणं, कानुडो त्रण खंगनो राणो, वासुदेव सपराणो ॥ परिग्रहने आरंभ भराणो, एकदिन आतिम किधो शाणो, जिन वंदन उजाणो ॥ नेमनाथने कहे हित आणो, वरसे वारु दिवस वखाणो, पाली थाउं हुं शिवराणो ॥ अतित अनागतने वर्तमान, नेउ जिननां हुआं कल्याण, अवर न एह समान ॥ २ ॥ आगम आराधो भवि प्राणी, जेहमां तीर्थकरनी
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