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४४३ मानजिन, पादधुर्महामंगलम् ॥ २॥ सांगोपांग मनंतपर्यवगुणोपेतं सदोपासके ॥ एकादश्य प्रतिमाश्च यगदिता, श्रद्धावतां तीर्थपे, सिद्धांतनिधि भूपतिविजयते, विभ्रत्सदै एकादशा चारांगादिमयं वपुर्विलसितं, भक्त्या नुतं भावतः ॥ ३ ॥ वैरोया विदधाति मंगलनति, सद्दर्शनोनामिह ॥ श्री मत्मक्ति जिनेश शासनसूर, कुबेरनामा पुनः ॥ दिग्पालगृहयक्षदक्षनिवहा, सर्वेपि ये देवता॥ते सर्वे विदधातु सौख्यमतुलं,ज्ञानास्मनां सूरिणां ॥४॥
॥ अथ बारसनी स्तुति ॥ ॥ श्रेयः श्रीयां मंगल केलिसद्म ॥ देशी ॥
॥ जे द्वादशीने दिने ज्ञान पाम्या, अरसुव्रत स्वामि सुरेंद्र नाम्या ॥ मल्ली लहे सिद्धि संसार छोडी, विमल च्यवन वंदु बिहुं हाथ जोमी ॥ १ ॥ पद्म प्रभु शीतलचंद्र जाया, सुपास श्रेयांस चवे नेमिराया ॥ अभिनंदन शीतल चरण जान, इम तेर कल्याणक वर्तमान, त्रिकाल पूजिने करं प्रणाम ॥२॥ निक्षु तीजे प्रतिमा छे बार; ते द्वादशांगी रचना विचार
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