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४४२ अनुभव रस लावे, केवलज्ञान थावे ॥ खट जिनवर कल्याण, संप्रति जे प्रमाण ॥ सवि जिनवर भाण, श्रीनिवासादि ठाण ॥ २॥ दशविध आचार, ज्ञान मां हे विचार ॥ दश सत्यप्रकार, पच्चखाणादि चार ॥ मुनिदशगणधार, भाखीया जिहाँ उदार ॥ ते प्रवचनसार, ज्ञानना जे आगार ॥३॥ दसदिशि सुरपाला, जे महा लोकपाला ॥सुरनर महिपाला, शुद्धदृष्टि कृपाला॥ ज्ञानविमल विशाला, ज्ञान लच्छीमयाला॥ जय मंगलमाला, पायनमे सुखाला ॥ ४ ॥
॥ अथ अगीआरसनी स्तुति ॥ ॥ स्नातस्या प्रतिमस्य ॥ ए देशी ।। ॥ मल्लिदेवसु जन्मसंयम, महाज्ञानं लह्या जे दीन ॥ स एकादशी वासरः शुभकर कल्याणमालालयः ॥वैदेहेश्वरकुंभगूढजलधिप्रौल्हासने चंद्रमाः, माता यस्य प्रभावती भगवती कुंभध्वजो व्याजतः ॥ १॥ ज्ञानं श्री ऋषभाजितस्य, मतिप्रादुर्भव सन्निमे ॥ पार्श्वर चरणच मोक्षमगमत्, पद्मप्रभाख्य प्रभु ॥ इत्येतदशकं चयत्र दिवसे, कल्याणकाना शुभं ॥जातं संप्रति वर्त
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