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॥ उपांग बारह अनुयोगद्वार, छ छेद पयन्नादस मूल. चार ॥ ३ ॥ श्री संघरक्षा करे देव भक्त्या , सुरासुर देवपद प्रशक्त्या ॥ सदा दिओ सुंदर बोध बीजं, सधर्म पाखे न किमे पतिजं ॥४॥
॥ अथ तेरसनी स्तुति ॥ ॥ थी शत्रुजय गिरि तीरथ सार ॥ ए देसी ॥
॥ पढम जिणेसर शिवपद पावे, तेरसे अनुभव ओपम आवे, सकल समिहित लावे ॥ शांतिनाथ वळी मोक्ष सिधावे, दर्शन ज्ञान अनंत सुखपावे, सिद्ध स्वरूपी थावे ॥ नाभिराय मरुदेवी मात, ऋषभदेवना जे विख्यात, कंचन कोमल गात ॥ विश्वसेन नृप अचिरा मात, सेवो शांति जगतना तात, जेहना शुभ अवदात ॥ १॥ पद्मचंद्र श्रेयांस जिनेशा, धर्म सुपास जे जग जन इशा, संयम ले शुभ लेशा ॥ वीर अनंतने शांति महीशा, जन्म थया एहना सुजगीसा, टाल्या सकल कलेसा ॥ वर्तमान कल्याणक हिसा, तेरस दीने सवि अमर महिसा, प्रणमे जेनी सदिशा ॥ सकल जिनेसर भवन दिनेसा, मदन मान
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