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४०३ गह गहता ॥ दाता दुर्लभ वृक्ष राज, फल फुले त्रहता ॥५॥ कपटी जिनमत लिंगिया, वळी बबूल सरिखा ॥ खीर वृक्ष आडा थया, जीम कंटक तिखा ॥ दान देयंता वारसी. अन्य पावन पात्री ॥ त्रिजा सुपन विचार कह्यो, जिनधर्म विधात्री ॥६॥ सिंह कलेवर सारिखो, जिन शासन सबलो ॥ अति दुर्दात अगाह निय, जिनवायक जमलो ॥ परशासन सावज अज, ते देखी कंपे ॥ चउथा सुपन विचार इम, जिनमुखथी जंपे॥णागच्छ गंगाजल सारीखो, मूंकी मति हिणा ॥ मुनि मन राचे छिबरे, जीम वायस दीणा ॥ वंचक आचारज अनेक, तिणे भुलविया॥ ते धर्मातर आदरे, जडमति बहु भवियां ॥८॥ पंचम सुपन विचार एह, सुंणीयो राजाने ॥ छठे सोवन कुंभ दीठ, मइलो सुंणि कांने ॥ को को मुनि दरसण चारित्र, ग्यान पूरण देहा ॥ पाले पंचाचार चारू, छंडि निज गेहा ॥९॥ को कपटी चारित्र वेश, लेइ विप्रतारे ॥ मश्लो सो. वन कुंभ जीम. पिंम पापे भारे ॥ छठा सुपन विचार एह, सातमे इंदिवर ॥ उकरने उतपति थइ, ते शुकहो
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