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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૪૦૨ थीर करीरे, सुमिण अर्थ सुविचार ॥ हैडे रे हैडेरे धरज्यो धर्म धुरंधरुरे ॥८॥ ॥ ढाल ४ थी ॥ ॥श्रावक सिंधुर सारिखा, जीनमतना रागी, त्यागी सह गुरु देवधर्म, तत्वे मति जागि ॥ विनय विवेक विचारवंत, प्रवचन गुण पूरा, एहवा श्रावक होयसे, मतिमंत सनुरा ॥१॥ लालचे लागा थोडिलें, सुखें राचि रहिया, घरवासे आशा अमर, परमारथ दहिया ॥ व्रत वैराग थकि नहि, कोइ लेशे प्राये, गज सुपने फल एह, नेह नवि माहोमांहे ॥२॥ वानर चंचव चपल जाति, सरखा मनि मोटा ॥ आगल होस्ये लालचि, लोभी मन खोटा ॥ आचारज, ते आचारहिण, प्रायें परमादि ॥धर्म भेद करस्ये घणा, सहज स्वारथ वादि ।।३॥ का गुणवत महत सत, मोहन मुनि रुडा ॥ मुख मीठा मायाविया, मनमोहे कुडा ॥ करस्ये माहोमांहे वाद, पर वादें नासें ॥ बीजा सुपन तणो विचार, इम वीर प्रकाशे ॥ ४॥ कल्पवृक्ष सरिखा होस्ये, दातार भलेरा ॥ देव धर्म गुरु वासना, वरि वारिना वेरा ॥ सरल वृक्ष सविने दीए, मनमां For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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