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घणे, जिन पगे वांदणां दिधारे॥जिन वचनामृत तिहां घणे, भवियणे घट घट पीधारे ॥८॥
॥ ढाल ३ जी राग मारु. ॥श्री जगदीश दयालु दुःख कोडि तुज जोडी ॥ जगमारे जगमा रै कहिए केहने वीरजीरे ॥१॥ जग जगने कुण देशे एहवी देशनारे, जाणि निज निरवाण ॥ नवरसरे नवरसरे सोल पहोर दिये देशनारे ॥२॥ प्रबल पुन्य फल संसुचक सोहामणारे, अज्जयां दणपन्न ॥ कहियां रे कहियांरे म. हियां सुख सांभली होएरे ॥ ३ ॥ प्रबल पाप फल अइझयणां तिम तेटलारे, अण पुछयां छत्रीस ॥ सुणतारे सुणतां रे भणतां सवि सुख संपजेरे ॥ ४ ॥ पुण्य पाल राजा तिहां धर्म कथांतरेरे, कहो प्रभु प्रत्यक्ष देव ॥ मुजनेरे मुजनेरे सुपन अर्थ सवि साचलोरे ॥ ५॥ गजवानर २ खीर ३द्रुम ४ वायस ५सिंह ६ घडोरे, ७कमलबीज ८ इम आठ॥देखिरेदेखिरे सुपन समय मुझ मन हुओ रे ॥६॥ उखर बिज कमल अस्थांनके सिंह-रे, जीव रहित शरीर ॥ सोवनरे सोवनरे कुंभ मलिन ए शुं घटेरे ॥७॥ वीर भणे भुपाल सुणो मन
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