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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नर सवे, हियडला माहे गहगहियारे || जमृतथी अति मीठडी, सांभली देशना जिननीरे ॥ पाप सं. ताप परो थयो, शाता थइ तन मननीरे ॥ ४ ॥ इंद्र आवे आवे चंद्रमा, आवे नरनारीना वृंदरे ॥ त्रिण प्रदक्षणा देश् करी, नाटिक नव नवे छंदोरे ॥ जिन मुख वयणनी गोठडी, तिहां हाये अति घणी मीठीरे ॥ ते नर तेहज वरणवे, जीणे निज नयणले दीठीरे ॥५॥ इम आणंदे अतिक्रम्या, श्रावण भाद्रवो आसोरे ॥ कौंतिक कोडिला अनुक्रमे, आवियडो कार्तिक मासोरे ॥ पाखि पर्व पन्होतयं, पोहतळ पुन्य प्रवाहिरे ॥ राय अढार तिहां मिल्या, पोसह लेवा उछांहिरे ॥ ६ ॥ त्रिभोवन जन सवि तिहां मिल्या, श्री जिन वंदन कामोरे ॥ सहेज संकिरण तिहां थयो, तिल पढवा नहि ठामोरे ॥ गोयम स्वामि समोवडी, स्वामि सुधर्मा तिहां बेठारे ॥ धन धन ते जिणे आपणे, लोयणे जिनवर दिठारे ॥णा पूरण पुन्यना ओषध, पोषध बत वेगे लिधां रे ॥ कार्तिक काली चउदशे, जिन मुखे पचखाण किधारे ।। राय अढार प्रमुख For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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