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Achar
૨૯૬ ॥ गौतम ऋषि आदे, चारशें चार हजार ॥ सहस्स चौद मुनीसर, गणधर वर ग्यार ॥२॥ चंदन वाला मुख, साधवी सहस छत्रीश ॥ दोढ लाख सहस नव, श्रावक दे आशिष ॥ त्रण लाख श्राविका, अधिकी सहस अढार ॥ संघ चतुर्विध थाप्यो, धन्य धन्य जिन परिवार ॥ ३ ॥ प्रभु अशोक तरु तळे, त्रिगडे करे वखाण ।। सुणे बारे परखदा, योजन वाणी प्रमाण ॥त्रण छत्र सोहे शिर, चामर ढाळे इंद्र ॥ नाटक बद्ध बत्रीश, चोत्रीश अतिशय जिणंद ॥४॥ फूल पगर नरे सुर, वाजे दुंदुभि नाद ॥ नमे सकळ सुरासुर, छांडी सवि परमाद ॥चिहु रुपे सोहे, धर्म प्रकाशे चार ॥चोवीशमो जिनवर,आपे भवनो पार ॥५॥प्रभु वर्ष बोहोंतेर,पाली निर्मल आय ॥ त्रिभुवन उपगारी,तरण तारण जिनराय ॥कार्तिक मासे दिन,दीवाली निरवाण ॥ प्रभु मुक्ते पोहोता, पामे नित्य कल्याण ॥६॥
॥ कलश ॥ इम वीर जिनवर, सयल सुखकर, नामे नव निधि संपजे ॥ घर ऋद्धि वृद्धि सुसिद्धि पामे, एकमना जे नर भजे ॥ तपगच्छ ठाकुर, गुण
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