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वैरागर, हीरविजय सुरीश्वरो ॥ हंसराज वंदे, मन आणंदे, कहे धन्य मुज ए गुरो ॥१॥
॥ अथ दीवाली कल्पनुं स्तवन । ॥ श्री श्रमण संघ तिलकोपमं गौतम, सुगति प्रणिपत्य पादारविंदं । इन्द्रभूति प्रभवमंहसो मोचकं, कृत कुशल कोटि कल्याण कंदं ॥१॥
॥ ढाल १ ली ॥ राग राभगिरि ॥ ॥ मुनि मन रंजणो, सयल दुःख भंजणो, वीर वर्धमानो जीणंदो॥मुगति गति जीम लही, तिम कहूं सुण सही, जीम होएं हर्ष हइडे आणंदो ॥ मु०॥१॥ करीय उद्घोषणा देशपुर पाटणे, मेघ जीम दान जल वहल वरसी ॥ धण कणग मोतिया झगमगे जोतिया, जीन देइ दान श्म एक वरसी ॥ मु०॥२॥ दोय विण तोय उपवास आदे करी, मागसिर कृष्ण दशमी दिहाडे ॥ सिद्धि साम्हा थश् वीर दीक्षा लेश, पा संताप मल दूर काढे ॥ मुं० ॥३॥ बहुल बंभण घरे पारj सांमिएं. पुण्य परमान्न मध्यान्ह किधुं ॥ भुवन गुरु पारणा पुन्यथी बंभणे, आप अवतार फल
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