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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar नीएं धार्यो रे ॥३॥ भाइ शब मस्तके वहीयो रे, प्रतिबोध सुर मुखे लहीयो रे ॥ श्रेणिक नरके ए पोहोतो रे, वन गया दशरथ पुत्तो रे ॥ ४ ॥ सत्यवंत हरिचंद धीर रे, डुंब घरे शिर वा नीर रे ॥ कुबेर दत्तने कुयोग रे, बेहेन वली माता शुं भोग रे ॥५॥ पर हथ्थे चंदन बाल रे, चढिओ सुभद्राने आल रे ॥ मयण रेहा मृगांकलेखा रे, दुःख भोगविया ते अ. नेका रे ॥६॥ करमे चंद्र कलंक्यो रे, राय रंक कोइ न मुकयो रे ॥ इंद्र अहल्या शुं लुब्धो रे, रयणादेवी रवि माउ कीधो रे ॥७॥ इश्वर नारीये नचाव्यो रे, ब्रह्मा ध्यानथी चूकाव्यो रे ॥ अइ अइ करम प्रधान रे, जीत्या जीत्या श्री वर्द्धमान रे ॥ ८॥ ___॥ ढाल १२ मी ॥ दीन सकळ मनोहर ॥ ए देशी ॥ ॥ इम कर्म हण्या सवि, धीर पुरुष महावीर ।। बार वर्ष तप्यो तप, ते सघलो विणनीर ॥ शालि वृक्ष तळे प्रभु, पाभ्या केवल ज्ञान ॥ समोसरण रचे सुर, देशना दे जिन भाण ॥१॥ अपापा नयरी, यज्ञ करे विप्र जेह ॥ सर्वे ब्रजवी दिख्या, वीरने वंदे तेह For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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