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Achar
त्रिभुवन धणी ॥ ४॥ ढाल ॥ एक दिन ध्यान पुरु करी, प्रजु नयरिये पोहोता गोचरी ॥ तिहां वैद्य, श्रवणे खीला जाणीआए ॥ पारणुं करी काउस्सग्गे रह्या, तिहां वैये संच भेळा कीआ॥ बांधीया, वृक्ष दोर खीला ताणिया ए ॥ ५॥ त्रुटक ॥ ताणी काढ्या दोर खीला, वीर वेदन थइ घणी ॥ आकंद करतां गिरि थयो शत खंड, जुओ गति कर्मह तणी ॥ बांधेरे जीवडो कर्म हसतां, रोवतां छूटे नहि ॥ धन्य धन्य मुनिवर रहे समचित्त, कर्म एम बेटे सहि ।।
॥ ढाल अगीआरमी ॥ ॥ जुओ जुओ करमे शुं कीधुं रे, अन्न वर्ष ऋषभे न लीधुं रे ॥ कर्म वश म करो कोइ खेद रे, मल्लीनाथ पाम्या स्त्री वेद रे ॥१॥ कर्म चक्री ब्रह्मदत्त नडियो रे, सुभूम नरकमांहे पडियो रे ॥ भरत बाहुबल शुं भडीयो रे चक्री हार्यो रायजस चडीयो रे ॥२॥ सनतकुमारे सह्या रोग रे, नल दमयंती वियोगरे ॥ वासुदेव जरा कुमर मायों रे, बलदेव मोह
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