________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३५९
लावे जननी मंदिरें, दासी प्रियंवदा जई तेणी वार ॥ माता० ॥ ४ ॥ राजा सिद्धारथने दीधी वधामणी, दासीने दान ने बहु मान दिए मनोहार ॥ क्षत्रिय कुंडम हे उच्छव मंमावियो, प्रजा लोकने हरष अपार || माता०||५|| घर घर श्रीफल तोरण त्राटज बांधियां, गोरी गावे मंगल गीत रसाल ॥ राजा सिद्धारथे जनम महोत्सव कयों, माता त्रिशला थई उजमाल ॥ माता० ॥ ६ ॥ माता त्रिशला फूलावे पुत्र पारणे ॥ ए आंकणी || झूले लाडकडा प्रभुजी आनंद भेर || हरखनिरखिने इंद्राणीयो जाए वारणें, आज आनंद श्री वीरकुमरने घेर ॥ माता० ॥ ७ ॥ वीरना मुख मा उपर वारुं कोटी चंद्रमा, पंकज लोचन सुंदर वि. शाल कपोल || शुकचंचू सरिखी दीसे निर्मल नासिका, कोमल अधर अरुण रंगरोल ॥ माता० ॥ ८ ॥ औषधि सोवनमढी रे शोभे हालरे, नाजुक आभरण सघलां कंचन मोतीहार || कर अंगुठो धावे वीरकुमर हर्षे करी, कांइ बोलावतां करे किलकार | माता० ॥ ॥ ९ ॥ वीरने लिलाडें कीधो छे कुंकुम चांदलो, शोभे
For Private And Personal Use Only