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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३५५ मासखमण पारण घरी दया, मथुरामां गोचरीए गया ॥ ८॥ गाये हण्या मुनि पडिया वशा, विशाखानंदी पितरिया हशा ॥ गौशृंगे मुनि गर्व करी, गयण न. छाळी धरती धरी ॥९॥ तप बळथी होज्यो बळ घणी, करी नियाj मुनि अणसणी ॥ सत्तरमे महा शुक्रे सुरा, श्री शुभवीर सत्तर सागरा ॥ १० ॥ ॥ ढाल ४ थी ॥ नदी यमुनाके तीर उडे दोय पंखीयां ॥ ए देशी॥ अढारमे भवे शात, सुपन सूचितसति ॥ पोतनपुरीये प्रजापति, राणी मृगावती । तस सुत नामे त्रिपृष्ठ, वासुदेव नीपन्या ॥ पाप घj करी सातमी, नरके ऊपन्या ॥ १ ॥ वीशमे भव थइ सिंह, चोथी नरके गया ॥ तीहांथी चवी संसारे, भव बहुळा थया ॥ बावीशमे नर भव लही, पुण्य दशा वरया ॥ त्रेवीशमे राज्यधानी, मूकाये संचरया ॥२॥ राय धनंजय धारणी, राणीये जनमिया ॥ लाख चोराशी पूरव आयु जीविया, प्रिय मित्र नामे चक्रवर्ती दीक्षा लही ॥ कोडी वरस चारित्र दशा पाली सही ॥ ३ ॥ महा शुक्रे थइ देव, इणे भरते चवी ॥ छत्रिका नगरीये For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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