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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ ॥ ढाल त्रोजी ॥ चोपाईनो देशी ॥ पांचमे भव कोल्लागसन्निवेश, कौसिक नामे ब्राह्मण वेष ॥ एंशी लाख पूरव अनुसरी, त्रिदंडीयाने वेषे मरी ॥१॥ काल बहु भमीयो संसार, श्रुणापुरी छठ्ठो अवतार ॥ बहोतेर लाख पूरवने आय, विप्र त्रिदंमी वेष धराय ॥२॥ सौधर्मे मध्य स्थितिये थयो, आठमे चैत्य सन्निवेषे गयो ॥ अग्निद्योतं द्विज त्रिदं. डीयो, पूर्व आयुलख साठे मूओ ॥ ३ ॥ मध्य स्थितिये सुर सर्गइशान, दशमे मंदिर पुर द्विजठाण ॥ लाख छप्पन पूरवापुरी, अग्निभूति त्रिदंडीक मरी ॥ ॥ ४ ॥ त्रीजे सरग मध्यायुथिरी, बारमे भव श्वेतांबीपुरी ॥ पुरव लाख चुम्माळीश आय, भारद्वीज त्रिदंडीक थाय ॥ ५॥ तेरमे चोथे सर्गे रमी, काळ घणो संसारे भमी ॥ चउदमे भव राज गृही जाय, चोत्रीश लाख पुरवने आय ॥ ६ ॥ थावर विप्र त्रिदंडी थयो, पांचमे सर्ग मरीने गयो ॥ सोळमे भव कोड वरस समाय, राजकुमार विश्वभूति थाय ॥ ७ ॥ संभूति, मुनि पासे अणगार, दुकर तप करी वरस हजार ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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