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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३४६ रे ॥ संघ भगति द्रव्य भावथी, साहमिवछल शुभ दावरे ॥ महोदय पर्व महिमा निधि ॥ १॥ साहमीवछल एकण पाले, एक कर्म समुदाय रे । बुद्धि तोलायें तोलीये, तुल्यलाभ फल थाय रे ॥ म० ॥२॥ उदाइ चरम राजरूषी, तिम करो खांमणां सत्यरे ॥ मिच्छामिदुकडं देइने, फरी सेवो पाप वत्तरे ॥ म०॥ ॥३॥ तेह कह्या माया मृषावादी, आवसक नियुक्ति माह रे ॥ चइत परवामि किजीयें, पूजा त्रिकाल उछांह रे ॥ म० ॥ ४ ॥ छेहली च्यार अठाइयें, महामहोत्सव करे देवा रे ॥ जिवाभिगमे ईम उचरे, प्रभु शासनना ए मेवा रे ॥ म०॥५॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी ॥ ए. देशी ॥ अमिनो तप वार्षिक पर्वमां, सल्य रहित अविरुद्धजी रे, कारक साधक प्रभुता धर्मनो, इछारोध होय सुद्ध जी रे ॥ तपने सेवो रे विरती नवी छुटे ।। ॥१॥ सो वरसे रे कर्म अकामथी, नारकि ते तो सकामे जी रे ॥ पाप रहित होय नवकारसी थकी, दस गुणो लाभ उदार जी रे ॥ त०॥२॥ दश लाख For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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