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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४७ कोड वरसनुं अठमे, पुरित मिटे निरधारो जी रे ॥ पंचास वरस सुधी तप्यां लखमणां, माया तप नवि शुद्ध जी रे ॥ असंख्य भव भम्यां रे एक कुवचन थकी, पद्मनाभ वारे सिद्ध जी रे ॥ त० ॥४॥ आहार निहरता रे सम्यग तप कह्यो, जुयो अभ्यंतर तत्व जी रे ॥ भवोदधि सेतु रे अठम तप भणी, नागकेतु फल तप जी रे ॥ त० ॥ ५॥ ॥ ढाल छठी ॥ स्वामी श्रीमंधर विनती ॥ ए देशी ॥ वार्षिक पडिकमणां विषे । एकहजार शुभ आठ रे । सास उसास काउसग तणां। आदरी त्यजो कर्म काठ रे ॥ प्रभु तुम शासन अति भलं ॥१॥ दुग लख चउ सय अम कह्यां। पल्य पणयालिस हजार रे ॥ नव भांगे पल्यना चउ ग्रह्या । सासमां सुर आयु सार रे ॥प्र०॥२॥ उगणिस लाखने त्रेसठी। सहस बसें सतसठि रे ॥ पल्योपम देव- आउखुं । नोकार काउसग जीठ रे ॥प्रण॥३॥ एकसठ लाख ने पणतीसा। सहस बसें देश जाण रे ॥ एता पल्यनुं सुर आउखुं । लोगस काउसग मान रे ॥०॥४॥ धेनुं For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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