SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४५ सवि सज थाओ देवदेवी, घंट नाद विसेषिये ॥२॥ ॥ चाल ॥ वली सुरपति जी उदघोषणा सुरलोकमां, नीपजावे जी परिकर सहित असोकमां ॥ द्विप आठमे जी नंदिश्वर सवि आविया, सास्वति प्रतिमा जी प्रणमि वधावे भावीया ॥३॥ त्रुटक ॥ भावीया प्रणामि वधावे प्रभुने, हरष बहुले नाचता ॥ बत्रीस विधना करीय नाटिक, कोडे सुरपति माचता ॥ हाथ जोडी मान मोडि, अंग भाव देखावती ॥ अपछरा रंभा अति अचंभा, अरिहा गुण आलावति ॥ ४ ॥ चाल ॥त्रण अठाईमां जी खट कल्याणक जिनतणा, तथा आलयजी बावन जिननां बिंब घणां ॥ तस स्तवनाजी सद्भूत अर्थ वखाणतां, ठाम पोहचे जी, पछे जिन नाम संभारतां ॥ ५॥ त्रुटक || संभारतां प्रभुनुं नाम निसदिन, परव अठाइ मन धरे ॥ समकित निरमल करण कारण, सुभ अभ्यास ए अनुसरे ॥ नर नारी समकितवंत भावे, एह पर्व आराधशे ॥ विघन निवारे तेहनां सहि, सौभाग्य लक्ष्मी बाधा ॥ ढाळ चोथी ॥ आदि जिणंद मया करी ॥ ए देशी ॥ परव पजुसणमां सदा, अमारी पडहो बजडावो For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy