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३४५ सवि सज थाओ देवदेवी, घंट नाद विसेषिये ॥२॥ ॥ चाल ॥ वली सुरपति जी उदघोषणा सुरलोकमां, नीपजावे जी परिकर सहित असोकमां ॥ द्विप आठमे जी नंदिश्वर सवि आविया, सास्वति प्रतिमा जी प्रणमि वधावे भावीया ॥३॥ त्रुटक ॥ भावीया प्रणामि वधावे प्रभुने, हरष बहुले नाचता ॥ बत्रीस विधना करीय नाटिक, कोडे सुरपति माचता ॥ हाथ जोडी मान मोडि, अंग भाव देखावती ॥ अपछरा रंभा अति अचंभा, अरिहा गुण आलावति ॥ ४ ॥ चाल ॥त्रण अठाईमां जी खट कल्याणक जिनतणा, तथा आलयजी बावन जिननां बिंब घणां ॥ तस स्तवनाजी सद्भूत अर्थ वखाणतां, ठाम पोहचे जी, पछे जिन नाम संभारतां ॥ ५॥ त्रुटक || संभारतां प्रभुनुं नाम निसदिन, परव अठाइ मन धरे ॥ समकित निरमल करण कारण, सुभ अभ्यास ए अनुसरे ॥ नर नारी समकितवंत भावे, एह पर्व आराधशे ॥ विघन निवारे तेहनां सहि, सौभाग्य लक्ष्मी बाधा ॥ ढाळ चोथी ॥ आदि जिणंद मया करी ॥ ए देशी ॥ परव पजुसणमां सदा, अमारी पडहो बजडावो
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