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वर्षा समयें, भक्ष्यानक्ष्य विवेक ॥ अछति बरनु पण विरतियें। बहु फल वंकचुल विवेक रे ॥ प्रा० ॥२॥ जे जे देह ग्रहीने मुक्यां । जे जे हिंसा थाय ॥ पाप अकर्षण अविरति योगे ॥ ते जिवे कर्म बंधाय रे ॥ ॥प्रा० ॥३॥ सायक देहता जिव जे गतिमां ॥ वसिया तस होय कर्म ॥ राजा रंकने किरीया सरिखी, भगवति अंगनो मर्म रे ॥ प्रा० ॥ ४॥ चोमासि आ. वस्यक काउसगना ॥ पंच सत माने उसासा ॥ छठ तपनी आलोयण करतां ॥ विरति धर्म उल्लास रे ॥ ।। प्रा०॥५॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ जिन रयण जी दस दिस निरमलता धरे ॥ ए देशी॥
कार्तिक सुदीमां जी घरम वासर अड धारीये। तिम वली फागुणे जी पर्व अठाइ संभारी ॥ त्रण अटाइ जी चोमासा त्रण कारणीं ॥ भवी जिवनां जी पातिक सर्व निवारणी ॥१॥ त्रुटक ॥ निवारणी पातिक तणी ए जाणी ॥ अवधिज्ञाने सुरवरा ॥ निका य चारना इंद्र हर्षित, वंदे निज निज अनुचरा ॥ अठाइ महोत्सव करण समये, सास्वता ए देखीयें ॥
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