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Achar
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॥ अथ एकादल गणधरनुं प्रभातीयुं ॥ ॥ चालोने प्रीतमजी प्यारा शेजेजे जइये ए देशी॥
॥प्रभाते उठीने भविका गणधर वंदो ॥ गणधर बंदोरे भविका गणधर वंदो ॥ प्रजा० ॥ इंद्रभूति नाम पहेलारे गणधर, जीवनो संदेह ॥ अग्निभूतिने कर्मनो संदेह, नमिये गुण गेह ॥ प्रभा० ॥१॥ जीव शरीर बे एकज माने, वायुभुति नामे ॥ गौतम गोत्र सहोदर त्रण, प्रणमं पुन्य कामे ॥ प्रभा०॥२॥ चोथा गणधर व्यक्तजी वंदो, सर्व सुन्य माने ॥ आ लव परभव सरखो थावे, सोहम अनिधाने ॥ प्र॥३॥ मंडित गणपति छठारे जिनना, बंध मोद टाले ॥ मौरीय पुत्रने देवनो संदेह, हैयडामे साले ॥प्रभा०॥ ॥४॥ नारको जगमां नजरे न देखे, अकंपित बोले॥ अचल भ्राताजी पून्य पाप दोय, संशयमा डोले ॥ ॥ प्रना० ॥ ५ ॥ मेतारजने पर भव शंका, गणपति परजासे ॥ मोक्ष घटे नहि युक्ति करतां, आव्या प्रभु पांसे ॥प्रभा० ॥ ६॥ संदेह भांगीने मुक्ति देखाडे, जिनवर माहावीर ॥ केवळनांणी प्रभने वांदी. बुज्या
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