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રૂકર माहा धीर ॥ प्रभा०॥७॥चुमालोसेय ब्राह्मण साथे लेइ श्रमण दीक्षा ॥ पांमे एकादश प्रभुनी पासे, त्रिपदीनी शिक्षा॥ प्रभा०॥८॥ द्वादशांगी रचे सघलारे गणधर, करे जिनवर सेवा ॥ उत्तम गुरु पद पाये नमतां, लहीये शिव मेवा ॥ प्रभाते० ॥ ९ ॥ इति संपूर्ण ॥
॥ अथ अठाई स्तवन लिख्यते ॥
दूहा ॥ स्यादवाद सुद्धोदधि । वृद्ध हेतु जिनचंद ॥ परम पंच परमेष्टीमां । तास चरण सुखकंद ॥१॥ त्रिगुण अगोचर नाम जे । बुद्धि शानमां तेह ॥ थया लोकोतर सत्वथी । ते सर्वे जीनगेह ॥ ॥ २॥ पंच वरण अरिहा विभु । पंच कल्याणक ध्येय ॥ खट अठाइ स्तवन रचुं॥प्रणाम अनंत गुणगेह ॥३॥
॥ढाल पहेली ॥ कपुर होए अति उजलो रे ॥ ए देशी ॥ चैत्र मास सुदि पदमां रे । प्रथम अठाइ संयोग ॥ सिद्धचक्रनी सेवना रे । अध्यातम उपयोगरे ॥ भविका पर्व अठाइ आराध ॥ जिम वंछित सुख साध रे ॥ भविका० ॥१॥ ए आंकणी ॥ पंच परमेष्टी त्रिकालनां रे । उत्तर चउ गुणकंत ॥ सास्वता
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