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Achar
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न होवे उदास हो ॥ गौ० ॥ शि० ॥ १५ ॥ सिद्ध स्वरूप जे ओलखे, आणी मन वैराग हो । गौ० ॥ शिवसुंदरी वेगें वरे, नय कहे सुख अथाग हो ॥ गौ० ॥ शिव० ॥ १६ ॥ इति श्री सिद्धस्तवनं संपूर्ण ॥
॥ अथ श्री सिद्ध भगवाननुं स्तवन ॥ ॥सिद्धनी शोभा रे शी कहुं ॥ ए अांकणी॥
॥ सिद्ध जगत शिर शोलता, रमता आतमराम ॥ लक्ष्मी लीलानी लेहेरमां, सुखिया छे शिव ठाम ॥ सि० ॥१॥ महानंद अमृतपद नमो, सिद्धि कैवल्य नाम ॥ अपुनर्भव ब्रह्मपद, वली अक्षय सुख विशराम ॥ सि० ॥२॥ संश्रेय निःश्रेय अक्षरा, दुःस्व समस्तनीहाण ॥ निवृत्ति अपवर्गता, मोद मुक्ति निरवाण ॥ सि०॥ ३ ॥ अचल महोदय पद लघु, जोतां जगतना ठाठ ॥ निज निजरूपं रे जुजुआं, वीत्यां कर्म ते आठ ॥ सि० ॥ ४ ॥ अगुरुलधु अवगाहना, नामें विकसे वदन्न ॥ श्री शुभवारने बंदतां, रहिये सुखमां मगन्न | सि०॥५॥ इति ॥
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