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सहु नरनार, आराध्यो नवकार ॥ श्रा० ॥ हेज धरी हियडे घणुंजी ॥ चैत्र मासें वली एह, नवपद शुं धरो नेह ॥ आ० ॥ पूज्यो ये शिवसुख घणुंजी ॥ ४ ॥ इणिपर गौतम स्वाम, नवनिधि जेहने नाम ॥आ०॥ नवपद महिमा वखाणीयोजी ॥ उत्तम सागर शिष्य, प्रणमे ते निशदीस ॥ आ०॥ नवपद महिमा जाणीयोजी इति संपूर्ण ॥
॥ स्तवन त्रीजु ।। ॥ जगजीवन जग वालहो ॥ ए देशी ॥ ॥श्री सिद्धचक्र आराधीये, शिवसुख फल सहकार लालरे ॥ ज्ञानादिक त्रण रत्ननु, तेज चढावण हार लालरे ॥ श्री सिद्ध० ॥ १ ॥ गौतमे पूछता कह्यो, वीर जिणंद विचार लालरे ॥ नवपद मंत्र आराधतां, फल लहे भविक अपार लालरे ॥ श्री सि० ॥ २ ॥ धर्मरथना चार चक्र छे, उपशमने सुविवेक लालरे ॥ संवर त्रीजुं जाणीय, चोसिद्धचक्र छेक लालरे ॥ श्री० ॥३॥ चक्री चक्र रयण बलें, साधे सयल छ खंड लालरे ॥ तिम सिद्धचक्र प्रभावथी,
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