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रजी ॥ देवगुरुने धर्म ते एहमां, दो तीन चार प्रकार ॥ भवी० ॥ ११ ॥ मारग देशक अवीनाशी पणो, आचार विनय संकेतजी ।। सहायपणुं धरता साधुजी, प्रणमो एहीज हेतु ॥ नवी० ॥ १२ ॥ विमलेश्वर यक्ष सानिध्य सारे, उत्तम जे आराधेजी॥ पद्मविजय कहे ते भवी प्राणी, निज आतमहित साधे ॥ भवी० ॥२३॥
॥ स्तवन बीजं ॥ ___॥ आछे लालनो देशी ॥ ॥ नवपद महिमा सार, सांभलजो नरनार ॥ आछे लाल ॥ हेज धरी आराधीयेंजी॥ तो पामो भ. वपार, पुत्र कलत्र परिवार ॥ आ०॥ नवपद मंत्र आराधीयेंजी ॥१॥ आसो मास विचार, नव आंबिल निरधार ॥ आ० ॥ विधिशुं जिनवर पूजीयेंजो ॥ अरिहंत सिद्धपद सार, गणगुंजी तेर हजार ॥ आ०॥ नव पदनुं इम कीजीयेंजी ॥ २ ॥ मयणा सुंदरी श्री पाल, आराध्यो ततकाल ॥ आ०॥ फलदायक तेहने थयोजी ॥ कंचन वरणी काय, देही तेहनी थाय ॥ । आ० श्री सिद्धचक्र महिमा कह्योजी ॥३॥ सांभलि
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