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सिद्ध प्रणमो भवी प्राणी ॥ नवी० ॥३॥ विद्या सौभाग्य लक्ष्मी पीठ, मंत्र जोगराज पीठजी ॥ सुमेरु पीठ पंच प्रस्थाने, नमो आचारज इष्ट ॥ भवी० ॥ ॥ ४ ॥ अंग उपांग नंदि अनुयोगा, 3 छेदने मूल चारजी ॥ दस पयन्ना एम पणयालीस, पाठक तेहना धार ॥ भवी०॥ ५ ॥ वेद त्रणनें हास्यादिक षट, मिथ्यात्व चार कषायजी || चउद अभ्यंतर नवविध वाह्यनी, ग्रंथी त्यजे मुनिराज ॥ भवी० ॥६॥ उपशम क्षय उपशमने क्षायिक, दरशण त्रण प्रकारेंजी ॥ श्रद्धा परणति आतम केरी, नमिये वारंवार ॥ भवी० ॥७॥ अठावीस चौदने खट दुग एक, मत्यादिकना जाणजी ॥ एम एकावन भेदे प्रणमो, सातमुं पद वरनांण ॥ भवी०॥ ८॥ निति ने अपर्ति भेदे, चारित्र छे व्यवहारेंजी ॥ निज गुण थिरता चरण ते प्रणमो, निश्चय शुरु प्रकार ॥ भवी० ॥ ९॥ बाह्य अभ्यंतर तप ते संवर, सुमता निर्जरा हेतुजी ॥ ते तप नमिए भाव धरिने, भव सायरमां सेतु ॥ भवी० ॥१०॥ ए नवपदमां पांच छे धर्मी, धर्म ते वरते चा
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