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बांहे बाजुबंध छाजे ॥ मोरा० ॥ शत्रु० ॥३॥ चुवा चुवा चंदन ओर अरगजा, केशर तिलक विराजे ॥ मो० ॥ शत्रु० ॥४॥ इण गिरि साधु अनंता सीधा, कहेतां पार न आवे ॥ मो० ॥ शत्रु० ॥५॥ शान विमल प्रभु इणीपरे बोले, आ भवपार उतारो ॥ मोरा राजींदा शत्रु०॥ ६ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री नवपद महिमा वर्णन श्री सिद्धचक्रजीतुं स्तवन ।।
॥ सांभलरे तुं सजनी मोरी, रजनी क्यां रमीआवीजी ॥ ए देशी ॥
॥सिद्धचक्र वर सेवा कीजे, नरभव लाहो लीजेजी ॥ विधी पूर्वक आराधन करतां, भव भव पा. तिक छीजे, भवीयण भजीयेजी ॥ अवर अनादीनी चाल, नित्य नित्य तजीयेजी ॥ ए आंकणी ॥१॥ देवना देव दयाकर ठाकर, चाकर सुरनर इंदाजी ॥ त्रिगडे त्रिभुवन नायक बेग, प्रणमो श्री जिनचंदा ॥ भवी०॥२॥ अज अविनाशी अकल अजरामर, केवल दंसण नाणीजी ॥ अव्याबाध अनंतु वीरज,
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