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सोरठ ॥ सोरठ देशमां दोय मोटा तीरथ, गढ गी
रनार जय गीरीया ॥ चालो० ॥ १ ॥ रैवत गिरिपर जदुपती केरा, दीक्षा केवलज्ञान रसीआ ॥ चा० ||२|| राजुलनार नेमीश्वर साथै, संजम लेइ भवोदधी तरीया || चालो० ॥ ३ ॥ शेत्रुंजय उपर ऋषभ जिनेश्वर, पूर्व नवाणु वार समोसरीया || चालो० ॥ ॥ ४ ॥ तिहां अणगार अनंत अपारा, अणसण ग्रही शिवसुख वरीया ॥ चालो० ॥ ५ ॥ नाभी रायाने करु जुहार, पावन करु सब मोह परीया ॥ चालो० ॥ ६ ॥ हीणा अवतार न होत लीगारा, ज्ञान विमल प्रभु सीर धरीया || चालो० ॥७॥ इति ॥
॥ स्तवन पांचमुं ॥
॥ शत्रुंजयनो वासी प्यारो लागे, मोरा राजींदा ॥ इणि डुंगरीयारी झीणी झीणी कोरणी, उपर शिखर विराजे || मोरा राजींदा ॥ शत्रुं० ॥ १ ॥ चउमुख बिंब अनोपम छाजे, अद्भुत दीठां दुख भाजे ॥ मोरा० ॥ शत्रुं० ॥२॥ कानेजी कुंडल मुगट विराजे,
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