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तेज प्रताप अखंड लालरे ॥श्री सि०॥४॥ मयणाने श्रीपालजी, जपतां बहु फल लीध लालरे ॥ गुण जसवंत जिनेंद्रनो, ज्ञानविनोद प्रसिद्ध लालरे ॥ श्री सि०॥५॥ इति संपूर्ण ॥
॥ स्तवन चोथु ।। ॥ निद्रडी वेरण हुइ रही-ए देशी ॥ ॥श्री सिद्धचक्र आराधिये, जिम पामो हो भवि कोमि कल्याण के ॥ श्री श्रीपाल तणी परें, सुख पामोहो लहो निर्मल नाण के ॥ १॥ नवपद ध्यान धरो सदा ॥ चोखे चिचें हो आणी बहु भावके ॥ विधि आराधन साचवो, जिम जगमांहो होये जसनो जमावके ॥ नव० ॥२॥ केशर चंदन कुसुमशु, पूजी, ने हो उखेवीये धूपके ॥ कुंदरु अगरने अरगजा, तप दीनता हो कीजें धृतदीपके ॥ नव० ॥ ३॥ आशो चैत्र शुक्लपक्षे, नवदिवसहो तपकीजें एहके ॥ सहज सोभाग सुसंपदा, सोवन सम हो जलके तस देहके ॥ नव० ॥ ४॥ जाव जीव शक्ते करो, जिम पामो.
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