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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१६ बेठा ॥ भेला एकज थालीए, हिये हरखे हेठा ॥९९॥ दूध आण्युं तिण नारीये, पीरस्युं थाली मांहिं ॥ काजल कहे मुझ आखमी, पीधुं मेघाशाहे ॥ १०० ॥ मेघाने हवे ततखीणे, विष वायुं अंगोअंग || श्वासोश्वास रमी गया, पाम्या गतस्वरंग ॥ १ ॥ || ढाल ॥ १२ ॥ आवी मृगादेवी उदेखने रे, रोती कहे तिणिवार रे || महियो मेरो ते पिण बेहु जणारे, अति घणो करे पोकाररे ॥ २ ॥ फटरे कुलहीणा काजल इयुं कर्तुं रे लो, नावी लाज लगाररे ॥ मुख देखाडीश केम लोकमां रे, धिगधिग तुज अवतार रे || फ० ॥ ३ ॥ वीरडा ते न जाएयुं मन एवं रे, तारी भगिनीनो कुण सलुकरे ॥ मारे तो कर्मे ए छाज्यं नहीं रे, पडी दीसे छे मुजमां चुकरे ॥ ५० ॥ ॥ ४ ॥ एहवा लखीया छठी अक्षरा रे, तो हवें दीजे कुणने दोषरे, ॥ निरधारी मेलिओ नाहलो रे, मुजने न कीधो कहिइ रीसरे || फ० ॥ ५ ॥ एम वलवलती मृगादे कहेरे, वीरडा तें त्रोडी मोरी आशरे ॥ तुझने किम उकल्युं एहरे, कोइ न थइ पूरि आशरे || फ० | For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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