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२६८ हुं वन्दु त्रण काल, भावघणो मनमां धरी ॥जीरे जी॥ जीरे मारे जरतेश्वर निजनंद, पुछे प्रभु बहु मानथी ॥ जीरे जी॥ जीरे मारे तुम सरीखा जगनाथ, पूज्य कहे कुण कामथी ॥ जीरे जी ॥ २ ॥ जीरे मारे कृपावन्त भगवन्त, तीर्थ महिमा अति दाखीयो ॥जीरे जी।। जीरे मारे आठ उपर सो नाम, रस स्वाद करी चाखवो ॥ जीरे जी ॥ जीरे मारे सांजळी जिनवर वाण, ऋष. भसेन प्रमुख वली ॥ जीरे जी ॥ जीरे मारे चोरासी गणधार, तीर्थ स्थापे मन सली ॥ जीरे जी ॥ ३ ॥ जीरे मारे ऋषभसेन पुंडरीक, पुछे प्रभु चरणे नमी ॥ ॥ जीरे जी ॥ जीरे मारे कीहां होशे मुज सिकि, भाष्यो पूज्य केवल गमी ॥ जीरे जी ॥ जीरे मारे कहे केवली जिनराज, नाण निर्वाण साधशो ॥ जीरे जी ॥ जीरे मारे ए तीथे महा भाग्य, गुण अतिशय वाधशो ॥ जीरे जी ॥४॥ जीरे मारे पांच कोडी अणगार, फागण सुदी पूनम भली ॥ जीरे जी ॥ जीरे मारे करी संलेखन सार, चैत्र सुदी पूनम वली ॥जीरेजी ।। जीरे मारे पामी केवल नाण, अजरामर
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