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महामृगेंद्र मन आणीए | अशोकचित चित्तमां वसे अहनीश धर्मेंद्र जगजस करं ॥ कहे० ॥ १० ॥ अश्ववृंद कुटिलक वर्द्धमान नंदीकेशना गुण घणा, श्रीधर्मचंद्र विवेक जगपति कलापक सोहामणा ॥ विसोम सौम्याकृति जेनी आरणअंगि सुखकरं ॥ कहे ॥ ११ ॥ त्रीस चोवीसी दशे खेत्रे कालत्रिक जिन लिजिए, पंचकल्याणक त्रीस जिननां इम दोढसो गुणीजीए ॥ जिननक्ति करतां ध्यान धरतां कोटि तप फल होइनरं ॥ कहे० ॥ १२ ॥ पोषधने उपवास करीने आराधे एकादशी नरभव तेहनो सफल याये परमानंद पद देहली || गुरु रुपकीर्ति हृदय धरीने माणेक मुनि शिव सुखकरं ॥ कहे० ॥ १३ ॥ इति मौन एकादशी चैत्यवंदन संपूर्णम् ॥
अथ दोढसो कल्याणकनुं चत्यवंदन.
शासन नायक जग जयो, वर्द्धमान जगइश ॥ आतम हितने कारणे, प्रणमु परस मुनीश ॥१॥ खट परवि जेणे वर्णवी, तेहमां अधिकी जेह || एकादशी सम को नहीं, आराधो गुण गेह ॥ २॥ मागशर सुदी
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