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सुंदरी कर्म वशे गई देश नेपाल तो ॥ दुख सह्यां कीधां अपार तो, पंखी थकी जलधर पडे, तीहां समयों मनमांही नवकार तो ॥ जलधर तरी उतर्या पारतो ॥ ते॥रा०॥२४॥ फोफलपुर नगरी जस दीप मोजार तो, दमण सागर ऋषि रह्या चोमासु तो ॥ त्यां बेसी बेहु शीख्या नवकार तो, राजकुमार रत्नावली, चारित्र पाली गया मोक्ष दुवार तो॥ते॥ ॥रा० ॥ २५॥ त्रिभुवनमा हुओ जयजय कार तो, तेफल जाण ज्यो श्रीनवकार तो ॥ रास नवका. रनो रास भणुं श्रीअरिहंतनो ॥ रास भणुं श्री गौतम स्वामीनो, रास भणुं सर्व साधुनो ॥ ते फल जाणज्यो श्री नवकार तो, रास भणुं श्री नवकारनो ॥ ते॥ ॥रा०॥ २६ ॥ संपूर्ण ॥
॥ अथ श्री सिद्धाचल स्तबन ॥ ॥ हरणी जव चरे लालनां ॥ ए देशी ॥
॥ कर जोडी कहे कामिनी ललना, लालाहो प्रीतमजी अवधार, एह गिरिवरु रे ललना ॥ सफल करो लही आपणो ललना, लालाहो मानवनो अब
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