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॥ शासन नायक सुखकरण, वर्द्धमान जिन भाण || अहर्निश एहनी शिरवहु, आणा गुण माण खाण || १ || ते जिनवरथी पामीया, त्रिपदी श्री गणधार || आगम रचना बहु विधि, करी अर्थ विचार ॥ २ ॥ ते श्री श्रुतमां भाखिया, ए तप बहु विधि सुख कार || श्री जिन आगम पामीने, साधे मुनि शिवसार || ३ || सिद्धांत वाणी सुधा रसिक, श्रावक समकित धार ॥ अष्ट सिद्धि अर्थे करे, अक्षयनिधि तप सार ॥ ४ ॥ तप तो सूत्रमां अतिघणां, साधे मुनिवर जेह ॥ अक्षय निधानने कारणे, श्रावक ते गुण गेह ॥५॥
माटे भवितप करो, सर्व ऋद्धिपरे सार, विधिशु एह आराधतां पामी जे भवपार ॥ ६ ॥ श्री जिनवर पूजा करो, त्रिक शुद्धे त्रिकाल || तेम वळी श्री श्रुत ज्ञाननी, भक्ति थई उजमाल ॥ ७ ॥ पडिकमणा दोय टंकना, ब्रह्मचर्यने धरीये ॥ ज्ञाननी सेवा करी, सेने भवजल तरीये ॥ ८ ॥ चैत्यवंदन शुभ भावर्थाएं ॥ स्तवन थुई नमस्कार, श्रुतदेवी उपासना, धीरविजय हितकार ॥ ९ ॥
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