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याल भराववां, कुंभ उपर लीलो पीलो तास्तो बाधवो, नाडाकी बांधे, फुलनी माला होय तो नांखवी, पछी सौभाग्यवती स्त्रीने माथे चढावीये ते वरघाको वाजते गाजते विशाल चैत्य होय त्यां आवे पछी कुंभवाली यो प्रदक्षिणा दे, नैवेद्य प्रभु आगल ढोंकवां, त्रण पठी पुस्तक गुरु महाराजना उपाश्रये पधरावनुं, अने ज्ञान पूजन गुरू पूजन त्यां करीये, निरंन्तर भोंय सुबुं, निर्मल शियल पालवं, ए रीते जेटलां तप करतां होय तेटला कुंभ भिन्न भिन्न जोईये, देव वंदन पडिलेह करवां एम चार वर्ष सुधी करवुं, त्यारे चोसठ दीवसनो ए तप पूर्ण थाय इति श्री अक्षयनिधि तपनी विधि सम्पूर्ण. ॥
॥ अथ अक्षयनिधि तपनी विधि. ॥
॥ प्रथम ईरिया ही कहेवी, पछी तस्स उत्तरी कहेवी, पढी एक लोगस्सनो काउस्लग्ग करवो, पढ़ी प्रगट लोगस्स कहेवो, पबी, अक्षय निधि तप आराथवा चैत्यवंदन करूं, एम कही चैत्यवंदन करखं. ॥
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