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मुकीने उभा रही ज्ञाननी स्तुति करीये, ॥ दुहो॥ ज्ञानसमो कोई धन नहीं, समता समुं नहि सुख ॥ जीवित समी आशा नहि, लोभ समो नहि दुःख ॥ ॥१॥ पछी चोखानी पसली कुंभमा नांखीये, उपर श्रीफल. १मुकवू, एम दीन १५ सुधी चोखानी पसली तथा सोपारी रुपानाj घडामां नांखीये, सोलमे दीवसे कुंभ पुरो भरीये, पछी खमासमण देईने इच्छाकारेण संदिसह भगवान् श्रुतदेवता आराधनार्थ करेमि काउसम्ग कर, इच्छं, श्रुतदेवता आराधनाथ करेमि काउसग्गं अन्नथ्थ एक नवकारनो काउसग्ग करी,नमोऽर्हता कहीने ज्ञाननी थोय कहेवी, पनी खमासणा वीस देवां पनी हमेशां अक्षयनिधि ढाल सांभळवी. ॥
पछी “ॐ ही नमो नाणस्स" ए पदनी नवकारवाली २० गणवी, छेल्ले दीवसे रात्री जगो, पूजा, प्रभावना करवी, भादरवासुदी त्रीज सुधी एकासणा पंदर करवां. सुदी ४ संवच्डरीनो छेल्लो उपवास करवो, सुदी पांचमें पारणुं करवू, ते दीवसे वरघोडो मोटा आमंबरथी चढाववो, नैवेद्य सुखडी शक्ति प्रमाणे करावी
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