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॥ १५ ॥ बार मासने पख बोहोतेर, छठ बसें ओगणत्रीस खाणुं || बार अठम भद्रादि प्रतिमा, दीन दोइ चार दश जाणुंरे ॥ हमचडी ॥ १६ ॥ इम तप कीधा बारे वरसे, वीण पाणी उल्हासे ॥ तेमां पारणां प्रभुजी कीधां, त्रणसें ओगणपचासरे ॥ हमचडी ॥ ॥ १७ ॥ कर्म खपावी वैसाखमासे, सुद दशमी सुभ जाण ॥ उत्तरा योग शालिवृक्ष तले, पाम्या केवल नारे ॥ मचडी ॥ १८ ॥ इंद्रभूति आदि प्रतिबोध्या, गणधर पदवी दीधी ॥ साधु साधवी श्रावक श्राविका, संघ स्थापना कीधीरे ॥ हमचडी ॥ १९ ॥ चउद सहस अणगार साधवी, सहस छत्रीस कहीजे ॥ एक लाखने सहस गुण सहि, श्रावक शुद्ध कहीजेरे ॥ हमचडी ॥ || २० || तीन लाख अठार सहस वली, श्राविका संख्या जाणी ॥ त्रण से चौद पूर्वधारी, तेरसें ओही नाणीरे || हमी० ||२१|| सात सयां ते केवलनाणी, लब्धिधारी पण तेता ॥ विपुल मतिया पांचसें कहीया, चार वादी जेतारे || हमचडी ॥ २२ ॥ सातसें अंतेवासी सीध्या, साधवी चौदसें सार ॥ दीन दीन तेज
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