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सवाये दीपे, ए प्रभुजीनो परिवाररे ॥ हमचडी ॥ २३॥ त्रीस वरस घरवासे वसीया, बार वरस छद्मस्थ्ये । तीस वरस केवल बेंतालीस, वरस समणा मध्येरे ॥ ॥ हमचमी ॥ २४ ॥ वरस बहोतेर के आयु, वीर जिणंद- जाणो ॥ दीवाली दीन स्वाती नक्षेत्र, प्रभुजीनो निरवाणरे हमचडी ॥ २५॥ पंचकल्याणक एम वखाण्या, प्रभुजीनां उल्लासे ॥ संघ तणे आग्रह हरख भरीने, सुरत रही चोमासुंरे । हमचडी ॥२६ ।।
कलश॥ इम चरम जिनवर, सयल सुखकर, थुण्यो अति उलट धरी । अषाम उज्वल पंचमी दिन, संवत शत त्रीहोतरे ॥ भाद्रवा शुद पडवा तणे दीन, रविवारे उलट भरो ॥ विमल विजय उवज्ञाय पदकज, भ्रमर सम शुभ शीष्य ए॥ रामविजय जिनवर नामे, लहे अधिक जगीसए ॥२७॥ इति श्री वीर जिन स्तवन ॥
॥ श्रीआंबिल वर्धमान तपर्नु चैत्यबंदन । ॥ वर्धमान जिनपति नमी, वर्द्धमान तप नाम ॥ ओली आंबिलनी करूं, वर्द्धमान परिणाम ॥ १ ॥
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